सुंदरतम प्रकृति
सुंदरतम प्रकृति
प्रकृति तुम हो कितनी उदार !
सुंदरता है तेरी अद्भुत, अथाह,
तुम हो पंत की "पल्लव"।
"निराला की "जुही की कली"
महादेवी की "वर्षा सुन्दरी",
तो प्रसाद की "कामायनी"।
तुम मुस्काती तो जग मुसकाए।
तुम लहराती दिल लहराए।
तुम्हारा हर्षित रूप देख कवि,
कर लेता कितनी कल्पनाएं।
तुम्हारे वर्णन के बिना पूरी न हों,
उनकी कोई भी रचनाएँ।
चहुँ ओर हो कोमल बाहें फैलाए।
चंचल तितली ,भंवरे सी इतराए।
नदी ,पर्वत,झरने,समुद्र,गुफाएं वृक्ष,,
पक्षी,जन्तु बहती हवाएँ आदि,
ये सभी तेरे ही प्रतिरुप हैं।
इनसे सजकर लगती तू क्या खूब है।
अन्दर तेरे छिपे अनेक रहस्य हैं ।
कितनोंं से अभी तक अनभिज्ञ हैं।
कुछ बहुत चमत्कारी हैं तेरे सृजन।
देखकर होता अति आश्चर्य।
आयुर्वेद का तू प्रमुख स्तंभ है।
अलंकार का भी तू एक अंग है।
खूबियां हैं तुझमे अनगिनत,
करते हैं सभी तेरे गुणों का वन्दन।
लेकिन
प्रकृति तेरे भी दो रूप हैं ।
एक खुशी तो दूसरा क्रोध है।
तेरा मोहक रुप प्रशंसनीय ह।ै
इस रूप मे तू पूजनीय है।
पर जब तू क्रोधित हो जाए,
वश में किसी के न आए।
अपना विकराल रुप दिखाए।
इस रुप से जगत को चेताए।
मुझसे छेड़छाड़ करने से,
बिगड़ जाता संतुलन मेरा।
कोई दूजा बैर नहीं है तेरा मेरा।
रहने दोगे यदि मेरे ही रुप में,
तो वरदान स्वरूप मैं रहूंगी।
खुशी से इस जगत मे,
यदि तुम मुझे करोगे त्रस्त।
मेरे अभिशाप से रहोगे ग्रस्त।
पर्यावरण में बढ़ेगा प्रदूषण,
बीमार रहोगे सभी जन।
क्योंकि कम हो जाएगा
वातावरण में ऑक्सीजन।
इसलिए हे मानव अभी
समय है चेत जाओ!
प्रकृति और पर्यावरण बचाओ।
स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'✍️✍️
नई दिल्ली
प्रतियोगिता के लिए
Supriya Pathak
26-Nov-2021 01:38 AM
Nice
Reply
Zakirhusain Abbas Chougule
26-Nov-2021 12:52 AM
Nice
Reply